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17/8/2008

समाज का घिनौना नासूर-बंधुआ मजदूरों की नफरी कितनी ?

आज देश में बंधुआ मजदूरों-बाल बंधुआ मजदूरों, बाल मजदूरों की सही संख्या का अनुमान तो वे भी नहीं लगा सकते हैं, जो पूंजीपतियों, सरमायेदारों, नव धनाढयों, जागीरदारों, खदान मालिकों, निर्माण उद्योग मालिकों, ईंट भट्टा उद्योग मालिकों, कार्पेट उद्योग, जवाहरात उद्योग-ज्वेलरी उद्योग सहित अन्य उद्योगों के मालिकों के चंगुल में फंसे इन निरीह बेसहारा गरीबों के हकों की लडाई में अपने आप को अवलम्बरदार द्योषित करते हैं। रजिस्टर्ड ट्रस्ट बना कर, रजिस्टर्ड सोसायटियां बना कर विदेशी सहायता की भागमभाग में लगे नये जमाने के इन मठाधीशों से अगर सीधा सवाल पूछा जाये कि हुजूर-ए-आला आप ने फील्ड में जाकर कितने बंधुआ मजदूरों को छुवाया ? कितने बाल बन्धुआ मजदूर आपके द्वारा छुडवाये गये फील्ड में संघर्ष कर ! क्या प्रेक्टीकल काम किया गरीबों के हक में ? तो जवाब में बगलें झांकेगें ये मठाधीश ! हम ज्यादा दूर न जायें-- इनसे इन के करे-धरे का पिछले सात सालों का हिसाब ही पूछ लें तो चेहरे पर हवाइयां उडती नजर आयेगी। ऐसी हालत में देश में बन्धुआ मजदूरों, बाल बन्धुआ मजदूरों, बाल श्रमिकों की सही तादात ये बेचारे कहां से बतायेगें ? इन्होने क्या कोई सर्वे किया है ? अगर किया है तो बतायें ! जब बंधुआ मजदूरों की सही जानकारी ही इनके पास नहीं है तो उनकी मुक्ति की बात ही बेमानी है, उनके पुनर्वास की बात भी हवा-हवाई है ?

एक सवाल जो आम अवाम के सीने में नश्तर की तरह वार करता है वह है- बन्धुआ मजदूरों की मुक्ति कराने वाले इतने सारे मठ-आश्रम, इतनी सभा-सोसायटियां और मोर्चे, इतने सारे एनजीओ होने के बावजूद बंधुआओं की संख्या बढती ही जा रही है द्रोपदी के चीर की तरह ! क्यों ? क्या कारण है इसका ? क्या समाज का नासूर बनी यह समस्या, देशी-विदेशी सहायता, दान, चन्दा इकट्ठा कर मठ-आश्रम स्थापित कर रोजी-रोटी कमाने का जरिया तो नहीं बन गई कुछ लोगों के लिये ? हमें गम्भीरता से इस का विवेचन करना होगा ! असलियत उजागर करनी होगी ! हम इस मुददे पर हकीकत से रूबरू होते रहेगें आने वाले समय में !तब तक आप भी सोचें और बताये बंधुआ मजदूरों की असली संख्या क्या है ?


हीराचंद जैन
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