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5 अक्टूबर, 2008
बजरंग दल-विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबन्ध लगाओ !

उडीसा में स्वामी लक्ष्मणानन्द की माओवादियों द्वारा की गई हत्या को मुददा बना कर, तो कभी, धर्मान्तरण को मुददा बना कर और कभी आरक्षण को मुददा घोषित कर बजरंगियों ने उडीसा और कर्नाटक में सीधे-साधे आदिवासियों, अनुसूचित जनजाति के निरही गरीबों में आतंक फैला रखा है। उडीसा में साढे चार सौ गांवों को उजाड दिया गया है। पांच हजार से ज्यादा गरीबों के घर जला दिये गये। एक नन सहित 2 महिलाओं के साथ बलात्कार की पुष्टि हो चुकी है। लगभग 45 व्यक्तियों को मार डाला गया है। सभ्य समाज ने इस तरह की निकृष्ट घिनौनी हरकत इस देश में इससे पहिले कभी नहीं देखी। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की नजर में यह सब "कथित झूंठा आरोप" है। भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद एवं बजरंग दल के बचाव में आ गई है और कांग्रेस को धमका रही है कि अगर बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद या आरएसएस पर कार्यवाही की गई तो भाजपा इसका राजनैतिक स्तर पर मुकाबला करेगी। अर्थात जिस तरह बाबरी मस्जिद मुददे का चुनावों को दौरान भाजपा ने राजनीतिकरण किया उस ही तरह आनेवाले विधान सभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में भाजपा आतंकवाद के नाम पर साम्प्रदायिक आतंक फैला कर, साम्प्रदायिक विद्वेश की स्थितियां पैदा कर हिन्दु वोटों को कन्सोलीडेट कर चुनाव जीतने की जुगत बैठा रही है। उस ही क्रम में बजरंग दल एवं विश्व हिन्दू परिषद द्वारा राजस्थान के बांसवाडा, डूंगरपुर, राजसमन्द, उदयपुर, चित्तौडगढ व प्रतापगढ आदि जिलों के आदिवासी क्षेत्रों में भी साम्प्रदायिक विद्वेश फैलाया जा रहा है। मध्यप्रदेश में भी ये ही हालात पैदा किये जा रहे हैं। अत: ऐसी गम्भीर स्थिति में बजरंग दल पर अगर प्रतिबन्ध लगाया जाता है तो भाजपाई क्यों उनके बचाव में उछलकूद कर रहे हैं।
वैसे भी खुद विश्व हिन्दू परिषद और बजरंगी, बजरंग दल को मिलिटेंट आउटफिट मानते हैं। उनकी वेव साईट http://vhp.org/bajrangdal.php में साफ-साफ शब्दों में लिखा है कि बजरंग दल "दी मिलिटेंट हिन्दू आउटफिट क्लोजली लिंक टू दी विश्व हिन्दू परिषद" हैं ! ऐसी स्थिति में उनमें और सिमी में क्या फर्क है ? दोनों ही मिलीटेंट आर्गेनाईजेशन्स हैं।
एक बात ओर ! भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल माओवादियों और नक्सलवादियों की खिलाफत करते हैं, लेकिन उनको यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि माओवादी और नक्सलवादी बजरंगियों की तरह गरीबों पर अमानवीय कहर नहीं बरपाते है। उनकी लडाई आरएसएस, वीचपी और बजरंगियों जैसे नस्लवादियों और शासन व्यवस्था से है। गरीबों के वे मसीहा हैं। नस्लवादी मिलिटेंट माओवादियों और नक्सलियों से न उलझे तो अच्छा ही होगा अन्यथा अपने बचाव के लिये उन्हें अमरीकियों के आगे झोली पसारने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा !
इण्डियन पोस्ट इन्फो नेटवर्क
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