सर्वाधिकार सुरक्षित रहते हुऐ, INDIAN POST INFO. NETWORK एवं ब्लाग के लिंक सहित ही सामग्री का अन्यत्र इस्तेमाल किया जा सकता है।
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ने आखीर डुबो ही दिया !

आखीर ! हो गई टांय-टांय फिस्स ! बनने से पहिले ही निकल गई बिगडने की बारात ! सिर फुटव्वल ने सारा जायका ही खराब कर दिया तीसरे मोर्चे का ! अपनी-अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के भंवरजाल में उलझी स्वार्थी नेताओं के नेतृत्व वाली व्यक्तिगत पार्टियों के आकाओं ने तीसरे मोर्चे के अस्तित्व में आने से पहिले ही उसे इस कदर बदनाम कर दिया कि अब कोई पार्टी, कम से कम चुनाव सम्पन्न होने तक, तीसरे मोर्चे का नाम भी नहीं लेगी। वाम-जनवादी मोर्चे की पार्टियां फारवर्ड ब्लाक, सीपीआईएम, सीपीआई और आरएसपी में भी आपसी सिर फुटव्वल चरम पर है। चारों पार्टियों में सीट समझौते को लेकर भारी मतभेद हैं। केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा को छोड दें तो पूरे देश में वामपंथी पार्टियों सीपीआईएम और सीपीआई का कोई खास वजूद नहीं है, खास कर देश के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ! लेकिन इन पार्टियों के आका अपने आपको "दादा" से कम मानने को तैयार ही नहीं ! हिन्दी भाषी प्रान्तों में इनके पास लोकसभा चुनावों में अपने उम्मीदवारों की जमानत बचाने तक का सामान नहीं है, लेकिन दौलत के बूते पर अपनी सहयोगी पार्टियों फारवर्ड ब्लाक व आरएसपी पर अपनी दादागिरी थोपने की अकड जरूर है ! क्योंकि केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में सत्ता में रहते अकूल सम्पदा जो इकट्ठी करली है इन दादा पार्टियों ने ! वामपंथी पार्टियों सीपीआई और सीपीआईएम के पुराने इतिहास का अगर गहराई से अध्ययन किया जाये तो साफ हो जायेगा कि अपनी दादागिरी से इन पार्टियों ने अपनी सहयोगी पार्टियों को जो नुकसान पहुंचाया व उनका जो दोहन किया है वह ऐतिहासिक है। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल में दोनों वामपंथी पार्टियों और फारवर्ड ब्लाक व आरएसपी जैसी जनवादी पार्टियों की आपस में समझौता करने की मजबूरी है, इस ही लिये इन प्रदेशों में वामपंथी जनवादी मोर्चा बना है। लेकिन इन तीन प्रान्तों को छोड दें तो बाकी पूरे देश में कहीं भी वामपंथी जनवादी मोर्चा अस्तित्व में है ही नहीं। राष्ट्रीय स्तर पर भी चारों दलों के वामपंथी-जनवादी मोर्चे का औपचारिक तौर पर आज तक गठन हुआ ही नहीं है। मार्क्सवादियों के जहन में भी नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी-जनवादी मोर्चा अस्तित्व में आये। बिहार में सीपीआईएम, सीपीआई ने फारवर्ड ब्लाक व आरएसपी को दर किनार कर सीपीआई (एमएल) के साथ चुनावी तालमेल किया है। झारखण्ड में भी तालमेल नहीं हुआ। इसके अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, उडीसा, तमिलनाडू, कर्नाटक आंध्र में भी चुनावी तालमेल की कोई गुंजाइश नहीं है। मार्क्सवादी जब राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी-जनवादी मोर्चे को सक्षमता से मूर्तरूप देने में ही गैर जुम्मेदारान रूप से असफल हैं तो फिर तीसरे मोर्चे की तूती किस आधार पर बजा रहे हैं। तमाशा बना दिया है इन्होंने वाम-जनवादी एकता का ! अब जनाजा निकालने में लगे हैं वामपंथी-जनवादी मोर्चे का। लगता है मार्क्सवादियों की यह पार्टी -सीपीआईएम अब कामरेड प्रकाश करात व कामरेड वृन्दा करात की जेबी पार्टी बनने के लिये अग्रसर है। केरल-पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में इन्हें सबक मिलने वाला है। लोकसभा नतीजे आने के बाद मार्क्सवादियों को शायद समझ आये "एकता" शब्द का अर्थ ! सीपीआई की राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता खतरे में है अपने पतन की बेला में उन्हें याद आया है "हिन्दी भाषी क्षेत्र" ! लेकिन उनकी पार्टी के आका अपने आपको "दादा" से कम मानने को आज भी तैयार नहीं। अब तो जनता सबक सिखायेगी तभी अक्ल आयेगी ! फारवर्ड ब्लाक के शीर्षस्थ नेताओं के पास भी यही समय है, "वक्त की नजाकत" पहिचानने का ! उन्हें इस मुद्दे पर पुन: मंथन कर लेना चाहिये कि फारवर्ड ब्लाक के जन्मदाता नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के क्रान्तिकारी नेतृत्व में भारत में क्रान्तिकारी निरपेक्ष वैज्ञानिक समाजवादी गणतान्त्रिक व्यवस्था कायम करने के लिये फारवर्ड ब्लाक को ठोस धरातल पर मजबूत आधार से स्थापित होना है ! किसी भी हालत में वामपंथियों खास कर मार्क्सवादियों का पिछलग्गू बनने की प्रवृत्ति को तत्काल त्यागना होगा ! अन्यथा वक्त इन नेताओं को भी माफ नहीं करेगा ! इण्डियन पोस्ट इन्फो नेटवर्क
16 मार्च, 2009
Bookmark and Share